शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

हो रहा भारत निर्माण... !

आजकल हालात कुछ यूँ हो गये हैं कि लगता है जल्द ही मुल्क में दोबारा एमर्जेन्सी लगने वाली है . कांग्रेसी नेताओं के हाव - भाव में एक अलग ही आक्रामकता नज़र आ रही है  . शायद  गुज़रे महीने जो इनकी मैडम ने इनको विपक्ष के हमलों पर आक्रामक रुख़ अख्तियार करने का हुक्म सुनाया था उसे बड़ी वफ़ादारी से निभा रहें हैं

पढ़ें :-
http://www.jagran.com/news/national-sonia-instruction-for-attacking-attitiude-9592411.html

http://khabar.ndtv.com/news/show/coal-report-bjp-insists-on-pm-s-resignation-sonia-asks-her-mps-to-be-aggressive-25534

कुछ दिनों पहले जो  कांग्रेसी  विपक्ष और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का सामना करने से कतराते थे अब तेवर दिखाने लग गये हैं. यह आक्रामकता संसद में विपक्ष के सामने दिखाते तो फिर भी ठीक था लेकिन यह एग्रेशन आम जनता के खिलाफ खुल्लम खुल्ला दिन दहाड़े  बीच बाजार दिखा रहे हैं 

दो दिन पहले गुजरात के वडोदरा  में टोल प्लाज़ा पर जब पोरबंदर के कांग्रेसी सांसद  की गाड़ी रोकी गयी तो भड़क कर उसने बंदूक टोल कर्मियों पर तान दी और उन्हें जान से मार डालने की धमकी दी मज़े की बात यह है कि उक्त सांसाद का संसदीय क्षेत्र पोरबंदर है जो अहिंसा के  पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जन्मस्थली है , इन्हीं गाँधी के नाम पर  आज़ादी से ले कर अब तक साल दर साल कांग्रेस वोटों की फसल काट रही है



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http://navbharattimes.indiatimes.com/asked-to-pay-toll-cong-mp-pulled-out-gun/articleshow/16782276.cms


उधर , उत्तरप्रदेश में एक विधायक ने महिला आईएएस से बदतमीज़ी की
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http://www.bhaskar.com/article/UP-OTH-mla-upset-a-woman-ias-3915113-NOR.html?seq=3&HT3=

और , पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल के एक नेता ने कालेज छात्रा के साथ दुष्कर्म किया
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http://navbharattimes.indiatimes.com/-bengal-college-girl-drugged-and-gangraped/articleshow/16785941.cms

 इधर सरकारी जाँच एजेंसियाँ भी हरकत में आ गयीं है खबर है की उत्तराखंड सरकार ने योगगुरु  बाबा रामदेव के गुरु की गुमशुदगी की जाँच सीबीआई से कराने  की सिफारिश की है
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http://navbharattimes.indiatimes.com/ramdevs-missing-guru-case-to-cbi/articleshow/16785264.cms

 सनद रहे पिछले साल रामलीला मैदान में हुए हंगामे के बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने रामदेव पर यह आरोप लगाया था कि उन्होने अपने गुरु को गायब करवाया है.

उधर कांग्रेसी नेता आरोपों से इतने विचलित हो गये हैं की उन्होने टीवी चॅनेल्स पर केस कर दिया है
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http://navbharattimes.indiatimes.com/louise-khurshid-files-defamation-case/articleshow/16787242.cms
http://zeenews.india.com/news/nation/%E2%80%A2-unfairly-targeted-for-pursuing-truth-in-coalgate-scam-by-industrialist-turned-politician-naveen-ji_805291.html

उधर हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री को यह साक्षात्कार हुआ है कि सूचना के अधिकार के क़ानून का आम जनता ग़लत इस्तेमाल सरकार के खिलाफ और गोपनीय जानकारियों को जुटाने के इरादे से करती है . मज़े की बात यह है कि पिछले दिनों जब कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी की विदेश यात्रा और स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के बारे केंद्र सरकार से विवरण इस सूचना के अधिकार की बदौलत माँगे जाने का मुद्दा मीडिया में उछला तो साहब झल्ला उठे,


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http://khabar.ndtv.com/news/show/rti-should-be-circumscribed-if-it-encroaches-on-privacy-pm-27465

उनका झल्लाना बेतुका है क्योंकि हालात ऐसे हैं कि सूचना के अधिकार वाले क़ानून को वजूद में आए भले ही सात साल से लंबा वक्त बीत गया हो , आम जनता अभी भी इसके  बारे में अधिक नहीं जानती . जहाँ सरकार अपनी अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों  से संबंधित कथित कल्याणकारी नीतियों का प्रचार मीडिया में जोरों शोरो से करती है , वहीं सूचना के अधिकार के बारे में नही करती , दिलचस्प बात यह है कि यह क़ानून कांग्रेसी शासन के दौरान ही वजूद में आया है. और आरटीआई के द्वारा क्या कार्यकर्ता और क्या विपक्षी दल सभी सरकार के बखिए उधेड़ने पर आमादा हैं.


प्रधानमंत्री भले ही बेतुके तर्क दें कि आरटीआई के इस्तेमाल  से व्यक्तिगत  निजता  का हनन  और गोपनीय बातों  को जानने के लिए  किया जाता हो किंतु वह भी इस बात को मानेंगे कि इसी क़ानून की बदौलत कई भ्रष्टाचार और घोटाले उजागर हुए हैं वैसे भी  सार्वजनिक जीवन जीने वाले नेताओं की कोई निजता नहीं होती , वह हर वक्त जनता के प्रति जवाबदेह होते है , इसलिए प्रधानमंत्री का तर्क वाहियात है.

इन सारी घटनाओं का सिलसिला गत माह से शुरू हुआ है और यह इत्तेफ़ाक नहीं है , बल्कि कांग्रेस की  सोची समझी स्ट्रेटेजी है.   


मीडिया द्वारा आए दिन उजागर  होते भ्रष्टाचार के मामलों से तंग आ कर जनता का ध्यान बंटाने के लिए एकाएक कांग्रेस 'रिटेल में एफडीआई ले आई ,  डीजल महँगा करा दिया और साल में छ: सिलेंडर का कोटा तय किया और फिर एक एक कर अपने विरोधियों को निबटाने लगी.

लेकिन कांग्रेस के नेता अपनी  ही  ग़लत बयानबाज़ी के चलते लानत मलामत का शिकार बन रहे हैं
अभी कल परसों की ही खबर है कांग्रेस के  युवराज एक कार्यक्रम में भाषण देने पंजाब तशरीफ़ लाए , जनाब ने अपने भाषण में यह ज्ञान देश की जाहिल जनता के सामने परोसा कि पंजाब के  हर दस में से सात  नौजवान  नशेड़ी हैं
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121012_rahul_punjab_js.shtml


http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-punjab-congress-rahul-ghandi-drugist-39-39-270805.html


जनाब ने यह बताने की जहमत नहीं उठाई  कि यह बात वे किस हवाले से कह रहे हैं  खास बात यह है कि इनके वालिद साहब के जमाने में उनके चेले चपाटों  ने इन्हीं  नौजवानों के साथ बड़ी ज़्यादती की थी आज साहबज़ादे उनको नशेड़ी बता कर उनकी इज़्ज़त अफज़ाई कर रहे हैं.


पिछले दिनों हरियाणा में एक बलात्कार पीडिता द्वारा की गयी आत्महत्या का मामला उठा , कांग्रेस अध्यक्षा पीड़ित परिवार को हिम्मत बंधाने गयीं  लेकिन वहाँ की क़ानून व्यवस्था का आलम यह है कि उनके वहाँ तशरीफ़ लाने की देर थी और उनका  स्वागत दो अन्य बलात्कारों की खबर  से हुआ .
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http://hindi.in.com/latest-news/news/Haryana-Two-Rapes-Reported-After-Sonia-Visit-1510752.html
हरियाणा में महिलाओं के प्रति अत्याचार में वृद्धि पर एक नेता ने यह कहा कि नब्बे प्रतिशत मामलों में लड़कियों की सहमति होती है. जनाब ने  अपने युवराज की भाँति आंकडें तो दिए लेकिन उसका स्रोत नहीं बताया . जब मामले ने तूल पकड़ा तो साहब हाथ झटकते नज़र आए . बोले कि मैने तो गपशप के बीच बलात्कार की बातें की थी और सच - झूठ का पता वह नहीं जानते
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121012_haryana_rape_leader_sm.shtml
उधर कांग्रेस अध्यक्षा अपने नेता के इस गैर ज़िम्मेदाराना बयान की निंदा करने की बजाए यह कहती हुई पाईं गयीं कि बलात्कार की घटनाएँ तो पूरे देश में होतीं हैं  
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http://navbharattimes.indiatimes.com/sonia-gandhi-meet-the-rape-victims-in-haryana/articleshow/16735279.cms

वाकई , अपनी सरकार का इस बेशर्मी की हद तक बचाव करने का रिकार्ड शायद कांग्रेस से बेहतर अन्य किसी पार्टी का न होगा.इसी कांग्रेस की विरोधी पार्टी बीजेपी के नेता वाजपेयी जी ने गुजरात हिंसा के चलते मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'राजधर्म' निभाने की नसीहत दी थी उधर कांग्रेस का आलाकमान हरियाणा सरकार का बचाव कर रहा है.

हालत इस हद तक बिगड़ चुके हैं और जनता प्रशासन और सत्ताधारी नेताओं से इस कदर मायूस हो गयी है क़ि कांग्रेस शासित प्रदेशों में बिगड़ती क़ानून व्यवस्था से त्रस्त आम जनता अब खुद क़ानून हाथ में ले रही है. दो दिन पहले  नागपुर में हज़ारों की उग्र भीड़ ने एक अपराधी शख्स को दौड़ा - दौड़ा कर मार डाला और पुलिस प्रशासन भीड़ का मुँह ताकता रह गया

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http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=121010-155720-100000

सोचने वाली बात है कि जो हश्र नागपुर के गुण्डों का हुआ क्या हमारे देश के नेता इससे कोई सबक लेंगे ? या फिर अपनी ही मनमानी करते रहेंगे . डर इस बात का है यदि जल्द ही प्रशासनिक दमन और बढ़ती महँगाई , जनविरोधी नीतियों के बारे में कुछ न किया गया तो अराजकता का माहौल फैल सकता है क्योंकि जनता का सरकार पर से भरोसा कभी का  उठ चुका है.

रविवार, 11 मार्च 2012

उत्तर प्रदेश के नतीजे :पार्टियाँ अर्श से फर्श पर

दोस्तों अब क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम आ चुके हैं कई पार्टियों का भ्रम टूट गया है. अर्श से फर्श तक आने की कहानी तमाम पार्टियों में लगभग एक सी है.

एक तरफ तो कांग्रेस पार्टी की रही सही इज़्ज़त इन चुनावों में नीलम हो गयी वहीं दूसरी ओर भाजपा भी अयोध्या में औंधे मुँह ऐसे गिर पड़ी कि यह मुश्किल लगता है आगामी लोकसभा चुनावों में यह पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर २ अंकों में सीटें हासिल कर पाएगी अथवा नहीं .

हालाँकि मुल्लायम राज के वापस लौटने का मुझे इतना दुख नहीं जितना कि कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश में फ़ज़ीहत होने पर. खबर है की सोनिया जी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की सभी सीटों पर कांग्रेस को पराजय झेलनी पड़ी है. कांग्रेस का इतना बुरा हाल शायद ही पहले कभी हुआ होगा.

इन चुनावों से यह स्पष्ट है कि आने वाले १० सालों में उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कोई संभावना मौजूद नही है.

शुरुआती विश्लेषण से ऐसा मालूम पड़ता है कि मुसलमानों का एक तरफ़ा वोट सपा के खाते में गया है जबकि शहरी भागों में शिक्षित , मध्य वर्ग के वोटर जिन्होने पिछली बार बसपा का समर्थन किया वे कांग्रेस , भाजपा
और सपा में बँट गये .

आइए हम उन कारणों पर नज़र डालते हैं कि ऐसा क्यों हुआ :-

१). मायाजाल का टूटना :- बीते पाँच सालों में मायावती सरकार द्वारा ऐसा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया गया जिसके चलते मतदाता उन्हें दोबारा मौका देते .यूँ भी कोई लोकहित में काम करने के बजाए वह अपने और हाथियों के बुत लगाती रहीं और अपने विरोधियों को चुन चुन कर परेशान किया .

२). कांग्रेस का सिरदर्द :- पिछले चुनावों में कांग्रेस के बमुश्किल २२ सीटें थी जो इन चुनावों में बढ़ कर तकरीबन २८ हैं . मीडिया भले ही इस प्रदर्शन को कम आँकें लेकिन सच्चाई तो यह है की इन छ: सीटों का इन प्रतिकूल हालात में बढ़ना निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी है. भले ही राहुल फॅक्टर फुस्स हो गया लेकिन कुछ सीटें तो कांग्रेसी उम्मीदवार महज कुछ हज़ार वोटों से हारें है.

हालाँकि कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बसपा को अधिक नुकसान पंहुचाया इसमें कोई दो राय नहीं. खुद मायावती ने भी इस बात को कबूला है. कांग्रेस ने मुसलमानों को अपनी तरफ खींचने के लिए आरक्षण के सब्ज़ बाग दिखाए जिसको ले कर भाजपा ने कड़ा विरोध किया . यक़ीनन चुनावों से पहले कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियाँ मजबूत होती दिखाई दी . इसलिए बसपा के डूबते जहाज़ से चूहे भाग कर इन पार्टियों मिलने की सोचने लगे. उधर जब बाबू सिंह कुशवाह भाजपा में शामिल हुए तो मुसलमानों को यकीन हो गया कि भाजपा की स्थिति मजबूत है इसलिए वह बस-ट्रक भर भर कर मतदान केंद्र पंहुचे और साइकल के आगे बटन दबाया.

३). हिंदू मध्यम वर्ग का बसपा से मोहभंग :- बीते चुनावों में मायावती की सोशल इंजिनियरिंग भले ही कामयाब रही इन चुनावों में हिंदू मध्य वर्ग और उँची जाति के लोग बसपा से छिटक गये . चुनावों से पहले भाजपा -कांग्रेस की मजबूत होती स्थिति को देख उन्होने इन पार्टियों को चुना . यूँ भी बसपा इनकी पहली पसंद न थी.

४). पिछड़ी जाति का वोट बटना :- इन चुनावों में मध्य प्रदेश से 'आयातित' और स्टार- कॅंपेनर साध्वी उमा भारती को भाजपा के टिकट पर चरखारी में उतार कर नितिन गडकरी ने एक तीर से कई निशाने किए , पहला तो उमाजी के पुराने प्रतिद्वंदी 'श्रीमान बंटाधार' दिग्विजय सिंह को परेशान कर दिया , दूसरा राहुल गाँधी की बुंदेलखंडी नौटंकी का प्रभाव ज़ीरों किया और बसपा के ट्रेडिशनल वोटर्स को खींचना.

सपा की जीत पर पूरा मीडिया पगलाया हुआ सा है . कुछ समय पहले तक राहुल गाँधी की तारीफों में क़सीदे पढ़ने वाले लिक्खाड़ और पत्रकार अब अखिलेश की जय - जयकार कर रहे हैं. अख़बारों के संपादकीय और आर्टिकल्स में अखिलेश की तारीफों के पुल बाँधे जा रहे हैं. मानों उत्तर प्रदेश में इससे अभूतपूर्व कभी कोई घटना हुई ही नही.

पाँच साल पहले यही मीडियावाले मायावती की जीत को लेकर बड़े खुश थे लेकिन जल्दी ही पूरा मीडिया उनके पीछे पड़ गया . यही हाल अखिलेश और उनकी पार्टी वालों का होगा. अखिलेश को मुख्यमंत्री बनवा कर मुल्लायम इस भ्रम में हैं कि वह तीसरा मोर्चा बना कर प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन जनाब , इस बात के लिए अभी अभी दिल्ली बहुत दूर अस्त !!!

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

मीडीयाई आतंकवाद

दोस्तों मैने अपने पिछले लेख में स्टॅटिस्टिक्स के साथ यह साबित किया था की कैसे भारतीय मीडीया एक पार्टी और एक विचारधारा को एंडॉर्स करता है , इसी बीच पेड़ न्यूज़ की खबरों , मीडिया संस्थानों में व्याप्त अंधेर से पूरी दुनिया वाकिफ़ हो गयी कि 'प्रतिष्ठित' मीडिया कर्मियों का चरित्र 'भ्रष्ट' नेताओं , दुर्दांत आतंकवादियों झोला छाप ठगों और फ़र्ज़ी लोगों से ज़रा भी अलग नही है मगर फिर भी यह मक्कार मीडिया कर्मी अपने अपने टीवी चॅनेल्स और कॉलम में अपने वाहियात विचार रखते हुए इस बात का मुग़ालता पाले हुए हैं कि इनसे पाक ओ साफ कोई लोग नही इनके पेशे से अच्छा कुछ नहीं.

यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की मीडिया को जहाँ सरकार के बखिए उधेड़ने चाहिए वहीं वह अपना कम छोड़ कर उल्टे विपक्ष के पीछे हाथ पाँव मुँह धो कर पीछे पद गये हैं ताकि सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से उन्हें नयी सेवाएँ लॉंच करने की आज्ञा मिले और सीकूलर [जी हाँ सीकूलर क्योंकि यह 'सिक' [बीमार] विचार के हैं] सरकार से इन्हें
सहयता मिलती रहे.

इसी का नतीजा है जब बढ़ती महँगाई , किसानों की आत्महत्या और सरकार द्वारा प्राइवेट तेल कंपनियों के 'मुनाफ़े' हेतु जब तेल के दाम बढ़ाए गये तो एक भी मीडीयाई कौवे की हिम्मत नही हुई की इस जनविरोधी फ़ैसले के खिलाफ मुँह खोले और ज़बान को थोड़ा कष्ट दे , सरकार की तारीफ में लिक्खाड़ों और क़लम घिसने वालों के पेन की इंक सूख गयी , वेब न्यूज़ पोर्टल वालों की उंगलियाँ ऐसी खबर लिख पाते इससे पहले ही लकवे की शिकार हो गयीं

मगर जैसे ही एक झोला छाप इंग्लीश न्यूज़ चॅनेल ने एक 'कथित' स्टिंग ऑपरेशन 'भगवा आतंकवाद' के खिलाफ किया , धर्म निरपेक्ष और सांप्रदायिक सदभाव के ठेकेदारों की बाँछे खिल गयीं , कूद कूद कर इनके नुमाईंदे अपनी फूली हुई तोंद और पान की पीक से लबालब भरे मुस्मुसाए हुए अपने मुँह ले कर मीडीयाई कौओं को अपनी बाइट देने पंहुच गए और उँचे स्वर में चीख चीख कर संघ को कोसने लगे , किसी ने यह जाने की कोशिश नही की इस स्टिंग ऑपरेशन की असलियत क्या है? स्टिंग ऑपरेशन के कोवोर्डिनेटर तक का नाम किसी ने पूछने की जहमत नही उठाई जिस फोरेन्सिक लेबोरेटरी में इस टेप की जाँच की गयी किसी ने यह नही सोचा की उसको मॅनेज किया गया है या नहीं , गोया फोरेन्सिक लेबोरेटॉरी 'सरकारी लेवोट्री' [ पैखाना ] बन गयी जहाँ सरकार द्वारा प्रायोजित मीडिया चॅनेल्स अपनी गंदगी डंप करते हैं .

इन छिद्रान्वेशियों को यह तो नज़र आया कि वीडियोकॉन टॉअवर में प्रदर्शन कर्मियों ने गमले फोड़े , लेकिन यह नज़र नही आया की किस प्रकार बिहार विधानसभा में राजद , कांग्रेस और पासवान जी की पार्टी के सम्मानीय विधायकों ने गदर मचाया , कुर्सियाँ तोड़ीं गयीं और बिला वजह बवाल मचाया. संघ के 'चड्डीधारी' कार्यकर्ताओं को तो फिर भी मीडीयाई कौवे और धर्म निरपेक्षता के ठेकेदार फासीवादी कहते हैं लेकिन इन सम्मानीय विधायकों , धर्म निरपेक्षता के पुरोधाओं के काम फासीवादियों से किन मायनों में अलग हैं?

हाल ही में कांग्रेस के भूतपूर्व विधायक श्री संभाजी राव कुंजीर को पुणे में उन्हीं की पार्टी वर्कर्स ने बुरी तरह लात घूसों से मारा और यह घटना कांग्रेस भवन में हुई , अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए प्रदेश की कांग्रेस समिति के अध्यक्ष ने "दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही किए जाने" की बात कही लेकिन इस घटना को चार दिन हो गये कुछ नही हुआ और बात आई गयी हो गयी...


http://www.indianexpress.com/news/congmen-beat-up-their-exmla-in-pune/652451/

ज़रा याद करिए इन्हीं मीडीयाई कौओं ने करीब ६ साल पहले दीवाली के दिन भाजपा की प्रेस कोनफेरेंस में हुए उमा भारती प्रकरण को बार बार लगातार हज़ार बार दिखाया था , नौसिखिए पत्रकारों और कुकुरमुत्ता छाप मीडिया चॅनेल्स ने इस घटना पर अपने 'व्यूस' देश की जनता के सामने रखे और भाजपा में व्याप्त अनुशासन हीनता को लोगों को दिखाया उस दिन उमा जी ने आडवाणी जी की बात पर अपने कन्सर्न्स रेज़ किए और विरोध में वॉक आउट कर गयीं लेकिन मीडिया ने इसे अनुशासन हीनता करार देते हुए भाजपा को मृत प्राय: बता दिया , हैरत इस बात पर होती है की लात घूसे चलने पर कुछ अख़बारों को छोड़ इस खबर को मेजोरिटी मीडिया ने ब्लॅक आउट किया , क्यों किसके कहने पर???????

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

आई पी एल का कमाल और राजनीति में बवाल

आज कल आई पी एल के मसले पर बड़ा बवाल मचा हुआ है , कम्यूनिस्ट्स और भाजपा इस मुद्दे पर सरकार के बखिए उधेड़ रहे हैं , उधर सरकार भी रक्षात्मक हो गयी है , शशि थरूर से इस्तीफ़ा लेने के बाद अब ललित मोदी को बलि का बकरा बनाया जा रहा है और जहाँ तक लगता है मोदी भी बी सी सी आई का कच्चा चिट्ठा खोलने पर उतारू हैं . खैर आई पी एल की कलई खुली है तो बात बहुत दूर तक जाएगी , यह बात चौंकाती है यदि थरूर और मोदी में अनबन नही हुई होती तो शायद ही यह घोटाला उजागर होता.

बहरहाल इस पूरे मामले की जड़ और शशि थरूर की कथित महिला मित्र सुनंदा पुष्कर जी [एक अख़बार के मुताबिक ] अपने फेसबुक अकाउंट पर कहती हैं कि क्रिकेट का अर्थ है सट्टेबाज़ी और लड़कियाँ .
देखे खबर :http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5838457.cms

सुनंदा जी यह नही बताएँगी कि जब तक आप कोच्चि की टीम से जुड़ीं रहीं आप क्या कर रहीं थी? क्या लड़कियाँ सप्लाई की या फिर सट्टेबाज़ी में पैसा लगाया ? जब गुमनामी तरीके से वह आईपीएल से जुड़ी ही पैसा कमाने के लिए थी तो अब व्यर्थ के प्रलाप का क्या लाभ? यह साक्षात्कार इनको आईपीएल का भंडा फूटने पर ही क्यों हुआ? यह अपने आप में बड़ा सवाल है.

ऐसा कोई अकेला मामला नही है जो सामने आया है , पता चला है की आईपीएल के काले कारनामों में बड़े बड़े नेताओं की बेटियाँ और करीबी रिश्तेदार शामिल हैं.

एन. सी पी. सुप्रीमो और मौजूदा कृषि मंत्री शरद पवार की सुपुत्री और महाराष्ट्र से सांसद श्रीमती सुप्रिया सुले ने यह माना है कि उनके पति श्री सदानंद सुले के पास एम एस एम [ मल्टी स्क्रीन मीडिया] के शेयर हैं जो उनको उनके बीमार पिता बी आर सुले ने 'क़ानूनी' तौर पर ट्रान्स्फर किए हैं और पूरी प्रक्रिया वैध है.
जबकि यही सुप्रिया जी कुछ समय तक अपना और अपने परिवार का आईपीएल से संबंध नकारती रहीं.

पढ़े खबर :http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5846908.cms

एनसीपी के ही अन्य नेता और नागरिक उड्डयन मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल जी की बेटी पूर्णा पटेल के कहने पर एयर इंडिया ने आखरी पलों में एक फ्लाइट का शेड्यूल बदल कर उसे चार्टर्ड बना दिया.
अब इस मामले पर यू पी ए की फ़ज़ीहत हो रही है.

पढ़ें खबर : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5847051.cms

उधर एक अदालत ने आईपीएल टीम किंग्स इलेवेन पंजाब के सह मालिकों नेस वाडिया और अभिनेत्री प्रीति ज़िंटा को नोटिस जारी किया है जिसमे आदेश दिया गया है की वह बॅलेन्स शीट और वार्षिक रिटर्न्स जमा करें.

आईपीएल के ही एक अन्य टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक और कांग्रेस के पसंदीदा शाहरुख ख़ान के खिलाफ भी नया मामला उजागर हुआ है , बताया जाता है कि आयकर विभाग को कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ कुछ लेन देन में अनियमिताओं महत्वपूर्ण सुबूत हाथ लगे हैं और इसी कारण उन्होने रेड चिलीज़ के कार्यालयों में छापे मारे हैं.

पढ़ें खबर : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5843753.cms

विपक्ष के नेता शरद यादव आईपीएल को चोरों का अड्डा बता रहे हैं वहीं भाजपा नेता सुषमा स्वराज इस मामले पर जेपीसी से जाँच कराने की माँग कर रहीं हैं . सी पी आई के गुरुदास दासगुप्ता जहाँ इसको "आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला" बता रहे हैं वहीं सी पी एम के बासुदेव आचार्य आईपीएल को 'जुएबाज़ी का अड्डा" बता रहे हैं. इस मामले से जान छुड़ाते हुए सरकार के वरिष्ठ कॅबिनेट मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वे जेपीसी का गठन कर उस से जाँच करवाएँगे .

पढ़ें खबर: http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5847578.cms

उधर शरद पवार घोटाले का ठीकरा ललित मोदी पर फोड़ते हुए पल्ला झाड़ते हुए उल्टे मीडिया को खरी खोटी सुनाते हैं

पढ़ें खबर : http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/5846490.cms

हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थरूर के इस्तीफ़े की पेशकश करने पर भावुक हो गये थे , बस आँसू टपकने की देर थी .

पढ़े खबर : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5832732.cms

ज़रा सोचिए सरकार के तीन तीन कॅबिनेट मिनिस्टर्स का इस घोटाले में नाम उछलना क्या इंगित करता है? और यह सरकार भी इनको बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है. बोर्ड के उपाध्यक्ष और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने एक बयान में कहा कि किसी को भी बीसीसीआई की छवि से खेलने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि दो टूक शब्दों में कहा कि क्रिकेट और बोर्ड की छवि को बचाने के लिए जो भी जरूरी कदम हैं वे उठाए जाएंगे। उधर, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने फेमा के तहत आईपीएल के खिलाफ मामला दर्ज किया है।


यह पूरा गड़बड़ झाला है यह देश की जनता और लाखों क्रिकेट प्रेमियों के साथ बेहूदा मज़ाक है
विश्व प्रसिद्ध रेकॉर्ड धारी खिलाड़ियों को बेचने खरीदने का फ़ैसला अब यह चिन्धि चोर नेता कर रहे हैं यह पूरे देश के लिए और क्रिकेट प्रेमियों के लिए काफ़ी लज्जा जनक बात है.

रविवार, 21 मार्च 2010

मीडिया का हिस्टीरिया और सिकुलर फिलिया

दोस्तों बरेली में पिछले तकरीबन २ हफ्तों से दंगे फ़साद चालू है और हैरत की बात है कि देश के मीडिया में बजाए इन संप्रादाईक दंगों को कवर करने के बजाए आई पी एल की खबरें और स्वयंभू साधु सन्यासियों के 'कथित' सेक्स टेप दिखाए जा रहें है. यह कोई पहला मौका नहीं है जब इतने ज़रूरी मुद्दे को दरकिनार कर फ़िज़ूल की खबरें बना कर देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान जनता को परोस रहें हैं. आपको सरकार के तलवे चाटने वाली मीडिया के 'मॉड्स ऑप्रॅंडी' से परिचय करा दूं :-


१. हिट एंड रन : सरकार के विरोधी पार्टी या विरोधी विचारधारा के लोगों या उसका समर्थन करने वाले लोगों पर तथ्य हीन आरोप करना , उनकी पब्लिक इमीज को बेसिर पैर की खबरें और बातें बना कर सॅबाटेज करना.

२. सरकारी वादों और मंत्रियों के बयानों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना और लोगों की उम्मीदें बढ़ाना.

३. पड़ोसी मुल्क़ और खास तौर से पाकिस्तान से 'अमन की आशा ' जता कर वहाँ के लोगों की हिमायत करना.

४. सरकार से विरोध जताने वाले नेता या पार्टी और विचारधारा से जुड़े लोगों की रॅली और भाषण में कही गयी बातों को तोड़ मरोड़ कर सन्दर्भ से काट कर विकृत रूप से कहना और ब्रॉडकेस्ट करना .

५. बढ़ती महँगाई , सूखे या नक्सली कार्यवाही को ज़्यादा तवज्जो देना , और फालतू की खबरें दिखा कर असल मुद्दों को दबा देना.

६. ठाकरे के अख़बार सामना में लिखे गये संपादकीय को राष्ट्रीय खबर बना कर थर्ड रेटेड जर्नलिस्ट्स के ज़रिए उनकी राय लेना.

७. किसी विवादास्पद मुद्दे पर ऑडाइयेन्स का एसएमएस पोल लेना और यदि जनता का फीडबॅक चॅनेल के हितों से टकराता है तो उसे बदल देना.

८. कसाब , हैडली , अफ़ज़ल जैसों की खबरें हर दूसरे हफ्ते टीवी पर दिखाना.

९. लेफ्ट , कॉंग्रेस और बॉलीवुड से जुड़ी हर छोटी बड़ी हस्ती की मौत पर उसकी मय्यत का सीधा प्रसारण कर उसके चौथे , तेरहवें या बरसी पर स्पेशल रिपोर्ट ब्रॉडकेस्ट करना वहीं विरोधी पार्टी या विचारधारा से जुड़े लोगों की मौत की खबर एक टिकर के ज़रिए प्रसारित करना.

१०. कोई दिखाने लायक खबर हो तो किसी हंसोड़ को पकड़ कर उसी के डबल मीनिंग वाले चुटकुले दिखा दिखा कर लोगों को टॉर्चर करना.

११. हिन्दुस्तान से भागे हुए भगोड़े नदीम सैफ़ी और मक़बूल फिदा हुसैन की तरफ़दारी करते हुए उनसे जुड़ी खबरें दिखाना.

१२. 'बिग फाइट' या 'मुक़ाबला' जैसे प्रोग्राम दिखाना जहाँ का एंकर बहुत ही बाइयस्ड हो और वहाँ की ऑडाइयेन्स पहले ही मॅनेज की गयी हो. इस ऑडाइयेन्स मैं आधे लोग तो कॉलीजियेट्स होते हैं जिन्हे असल मुद्दों की समझ नही होती या वह जिद्दी बूढ़े जो दिमाग़ की खिड़कियाँ बंद कर कुछ सुनना नही चाहते.

१३. अदालत के विचाराधीन मामलों पर अपने एक्सपर्ट्स के दवारा जिरह - बहस कराना लोगों से फीबक्क के ज़रिए राय लेना और आरोपियों पर मीडीया ट्राइयल चला कर उन्हे दोषी ठहराना.

१४. उल्टे सीधे कॅंपेन्स पब्लिक अवेर्नेस के बहाने चला कर लोगों को एसएमएस , मेल भेज कर मिसलीड करना और उनसे जुड़ी कॉन्फिडेन्षियल इन्फर्मेशन को अपने विभिन्न कॉंटेंट प्रोवाइडिंग वेबसाइट्स के ज़रिए जुटाना और उसे थर्ड पार्टी को बेचना.

तो आपने जाना कि क्या है आज के मीडिया की क्रेडिबिलिटी !!! क्या कहा साहब? मैं बाल की खाल निकाल रहा हूँ तो ज़रा इन तथ्यों पर नज़र डालिए , बाक़ायदा उदाहरणों के साथ समझाता हूँ.


१. ज़रा याद करिए २००१ के तहलका फेम तरुण तेजपाल साहब को , वेस्ट एंड कांड स्टिंग ऑपरेशन के बाद कैसे चौड़ा सीना ले कर मीडिया से मुखातिब हुआ करते थे , उनकी 'बहादुरी' के लिए बिज़्नेस वीक पत्रिका ने इन्हे "Amongst the 50 leaders at the forefront of change in Asia." की लिस्ट में रखा था , जाने आज कहाँ हैं!

स्रोत : http://en.wikipedia.org/wiki/Tarun_Tejpal_%28journalist%29#cite_note-0

२. कोबरा पोस्ट और आजतक के उन 'जाँबाज़' 'निडर' पत्रकारों को जिन्होने 'ऑपरेशन दुर्योधन' के ज़रिए 'भगवाइयों' की संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे खाने की 'काली करतूते' दुनिया के सामने उजागर की , यक़ीनन इस कांड में कुछ कांग्रेसी नेता भी पकड़े गये लेकिन यह कोई बच्चा भी बताएगा कि उन नेताओं को बलि का बकरा बनाया गया सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी क्रेडिबिलिटी बनाए रखने के लिए. न मालूम यह जाँबाज़ पत्रकार कहाँ गुम हो गये.

३. वह गुमनाम लोग जिन्होने संघ के संजय जोशी का स्टिंग ऑपरेशन किया था न जाने कहाँ गए??

४. वह गुमनाम लोग जिन्होने भाजपा के दिलीप सिंह जूदेव का स्टिंग ऑपरेशन किया आज कहाँ हैं??

५. सन २००० में क्रिकेट कि दुनिया में मचे मॅच फिक्सिंग के बवाल के बाद ही मीडिया बिरादरी में 'स्टिंग ऑपरेशन' के पोटेन्षियल पर चर्चा हुई और जिस तरह से मशहूर खिलाड़ी हँसी क्रॉंज की स्विकोरोक्ति के बाद उनकी छवि जिस बुरी तरह प्रभावित हुई उसने पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी.

जाहिर बात है कि इससे प्रेरित हो कर तहलका वालों ने मनोज प्रभाकर के साथ मिल स्टिंग ऑपरेशन कर कई बड़ी क्रिकेट सेलिब्रेटिस के ज़रिए 'सच उगलवाने' की कोशिश की जिसमे वह औंधे मुँह गिरे और उन्हे पत्रकार बिरादरी से कोई समर्थन नहीं मिला तेजपाल साहब यह कहते सुने गये : "Extraordinary stories call for Extraordinary methods "

फिर २००१ में रक्षा सौदों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए इन्होने स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमे भाजपा और समता पार्टी के नेता पकड़े गए. कुछ दिन बाद खुद तहलका वालों ने यह क़ुबूल किया कि स्टिंग ऑपरेशन के दौरान उन्होने वैश्याओं का लालच दिखा कर आर्मी अफसरों फुटेज चोरी से हासिल किए .

पूरी खबर यहाँ पढ़ें : http://news.indiamart.com/news-analysis/tehelka-and-media-et-5247.html

सन २००१ में संसद में संसद पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद भी यह मीडिया वाले विहिप के शीला पूजन की खबरें दिखा कर असलीमुद्दे को डाइल्यूट कर रहे थे.
कहना होगा मुशर्रफ के देश [पाकिस्तान] के नाम दिए गये संदेश [ तारीख जनवरी २००१ ] में उन्होने साफ तौर पर हिन्दुस्तान को धमकी दी थी कि यदि पाकिस्तान की तरफ नज़रें टेढ़ी की तो जंग हिन्दुस्तान की धरती पर लड़ी जाएगी और पाकिस्तानी फौज पूरी ताक़त के साथ हिन्दुस्तान पर टूट पड़ेंगी , इस बारे में हिन्दुस्तान किसी मुगालते में रहें

स्रोत : http://www.satp.org/satporgtp/countries/pakistan/document/papers/2002Jan12.htm


६. इस बात पर भी गौर किया जाए जब १९९९ - २००४ तक भाजपा सत्ता में थी , सरकार में मौजूद मंत्रियों और हिंदुत्व से ताल्लुक रखने वालों को स्टिंगेर्स ने निशाना बनाया और इसे 'समाज सेवा' बताया लेकिन जब से यू पी सरकार सत्ता में है एक भी खोजी स्टिंगर का इतना गुर्दा नही हुआ कि किसी कॅबिनेट मंत्री या सरकार में शामिल या उसे समर्थन दे रही किसी पार्टी के नेता का ख़ुफ़िया वीडियो बना सके. इस दौर में भी संजय जोशी प्रकरण और संसद में सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने के मामलों में विपक्ष और खास तौर से भाजपा नेताओं को निशाना बनाया गया.


७. जुलाई २००८ में जब 'कॅश फॉर वोट' कांड हुआ था तो सपा के द्वारा भाजपा के नेताओं को रिश्वत दिए गये थे , जिसे सी एन एन आई बी एन ने बाक़ायदा फिल्माया था. जब यह टेप जारी करने की बारी आई तो चॅनेल पीछे हट गया !

स्रोत : http://www.rediff.com/news/2008/jul/23upavote26.htm

सी एन एन आई बी एन की वेबसाइट टेप न दिखाने को कुछ इस तरह जायज़ ठहराती है -


"CNN-IBN thought it fit not to be drawn into the political battle and waited to tell the truth about the tapes after making its submissions before the Parliament panel.

CNN-IBN on August 12 appeared before a Parliament panel set up to investigate allegations made by the MPs.

"

स्रोत : http://ibnlive.in.com/news/amar-singh-gets-clean-chit-in-cashforvote-scam/75151-37.html?from=search-relatedstories



याने कि सी एन एन आई बी एन यह टेप्स दिखा कर 'पोलिटिकल वॉर' में नही पड़ना चाहता और संसदीय पॅनल में यह टेप सब्मिट करने के बाद इससे जुड़ी बातें करेगा.

मीडिया को इससे शर्मिंदगी नही हुई कि इन्हीं की बिरादरी का एक चॅनेल अपने हितों को बचाने के लिए सच्चाई सामने नहीं आने दे रहा !

अमर सिंह को क्लीन चिट मिल गयी लेकिन इस घटना के टेप दिखाने का फ़ैसला आज तक चॅनेल नही कर पाया

मज़े की बात यह है की स्वामी नित्यानंद के टेप अपने चॅनेल पर चलाने से पहले एक बार भी राजदीप सरदेसाई या आशुतोष जी ने उनके असली - नकली होने के बारे में नहीं सोचा.

कॅश फॉर वोट स्कॅंडल का टेप खुद सी एन एन आई बी एन के लोगों ने बनाया था तब भी इनको इन टेप्स के जेन्यूवन होने पर शक है !!! हैरत की बात है स्वामी नित्यानंद का वीडियो सन न्यूज़ ने जारी किया था और अपने लोगों से ज़्यादा भरोसा सी एन एन आई बी एन को सन न्यूज़ पर था इसलिए इस वीडियो की क्लिप्स सैंकड़ो बार सी एन एन आई बी एन और आई बी एन पर दिखाई गयीं.

होना तो यह चाहिए था कि राजदीप सरदेसाई और आशुतोष जी स्टिंग ऑपरेशन पर डेढ़ साल पहले लिए गये स्टॅंड पर कायम रहते और मामले की सच्चाई जानने तक नित्यानंद की क्लिप्स ब्रॉडकेस्ट करते.



यह दोगला रवैया नहीं तो और क्या है? यह मीडिया वाले नेताओं को वादाखिलाफी और अपनी बात पर कायम न होने के लिए कोसते हैं इनकी खुद की करनी नेताओं से किस मायने में अलग है?

जब भाजपा नेताओं ने सी एन एन आई बी एन के टेप नही दिखाए जाने पर रुपयों से भरे थैले बीच सदन में उलट दिए तो इससे 'संसद' और 'लोकतंत्र की गरिमा' भंग हो गई और तमाम सेकुलर अख़बारों के संपादकों ने बड़े बड़े संपादकीय लिख कर एन डी को संसद की गरिमा भंग करने पर जी भर के कोसा.

लेकिन साहब इसी हफ्ते जिन लोगों को राज्यसभा के सदस्यता के लिए राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया गया उनमे मणिशंकर अय्यर का नाम है , मणिशंकर अय्यर कोई कलाकार नही हैं फिर भी तमाम नियमों क़ायदे क़ानून को तक पर रख कर इन्हे राज्यसभा भेजा जा रहा है , यह फॅवुरिटिसम और पार्षियालिटी नहीं तो और क्या है?
स्रोत : http://timesofindia.indiatimes.com/india/Rajya-Sabha-nominations-raise-eyebrows/articleshow/5703483.cms


पत्रकार और मीडिया वालों का काम तो सरकार के बखिए उधेड़ना रहता है यहा तो पूरी पत्रकार और मीडिया बिरादरी उल्टा विपक्ष के पीछे हाथ धो कर पड़ गई.

अब मैं अपनी बात को तथ्यों के साथ प्रमाणित कर दूं कि मीडिया का बड़ा धड़ा कांग्रेस से हमदर्दी रखता है , कांग्रेस के राइवल भाजपा नेताओं की खबरें आउट ऑफ प्रपोर्षन उड़ाई जाती हैं और उनका नाम खराब किया जाता है .

१.ज़रा यह गूगल न्यूज़ का स्टास्टिकल ग्रॅफ देखें जहाँ 'संजय जोशी स्टिंग' के लिए सर्च रिज़ल्ट्स दिखाए जा रहें हैं . संजय जोशी का स्टिंग २००५ में हुआ था और तब हर चॅनेल पत्रिकाओं में इसी की चर्चा होती थी. बार ग्रॅफ यह दिखा रहा है कि किस साल तक इनकी खबरें मीडिया में चलीं . ग्रॅफ से साफ है कि २००५ से हाल के कुछ सालों तक मीडिया ने इसे तरजीह दी.








अब इसी तरह का न्यूज़ ग्रॅफ ज़रा कांग्रेस के अजीत जोगी के स्टिंग ऑपरेशन के लिए देखें इनका स्टिंग ऑपरेशन सन २००३ में हुआ था और इनका स्टिंग ऑपरेशन उसी दौरान हुआ था बार ग्रॅफ बताता है कि इनकी चर्चा अधिक नही हुई!






दिलीप सिंह जूदेव के स्टिंग से जुड़े न्यूज़ रिज़ल्ट्स देखते हैं , इनका स्टिंग २००३ के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले किया गया और इनसे जुड़ी खबरों को मीडिया ने २००३ से २००६ तक लगातार ३ सालों तक प्रकाशित किया फिर २००७ से २०१० तक जब आम चुनाव और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए तब उनकी खबरों को जोरों शोर से उठाया गया.



यही नहीं जब भी दंगे फ़साद होते हैं तब तब मीडिया हिंदुओं के जानो माल के नुकसान को ज़्यादा तरजीह नही देता वहीं किसी जगह यदि कोई मुस्लिम जानो माल का नुकसान होता है उसे तुरंत कवर स्टोरी बना कर प्राइम टाइम में दिखाता है या पहले पन्ने पर छापता है. नमूना यहाँ देखे

मिरज दंगों का न्यूज़ ग्रॅफ देखें [जहाँ हिंदुओं के जानो माल का नुकसान हुआ]



गोधरा दंगों का न्यूज़ ग्रॅफ देखें





जाहिर है गोधरा दंगों का विषय मीडिया का पसंदीदा है और ८ साल बीतने के बाद भी हर महीने अख़बारों में इस पर कुछ न कुछ छपता ही रहता है वहीं जिन दंगों में पीड़ित बहुसंख्यक हिंदू होते है उनसे जुड़े कोई खबर नही प्रकाशित होती.


ऐसा लगता है मीडिया ने अपनी कुछ फ़ेवरेट सेलिब्रेटिस की लिस्ट बनाई हैं इनसे जुड़ी हर खबर चटखारे ले ले कर दिखाई जाती है

११ अक्टोबर को जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन है और यह महज़ इत्तेफ़ाक़ की बात है कि इसी दिन अमिताभ बच्चन भी पैदा हुए , इस दिन प्रिंट एलेकट्रॉनिक मीडिया बच्चन साहब की तारीफ में कसीदे पढ़ने लग जाता है वहीं जे पी के योगदान को कोई याद नही रखता.

ठाकरे परिवार कोई विवादास्पद बयान दे दे तो उनकी ख़बरे हेडलाइन बनाई जाती है और हफ्तों चर्चा होती है , वहीं आज़मी के आतंकवादीयों से संबंध उजागर होने की सूरत में सिर्फ़ १-२ दिन खबर दिखाई जाती है और सख्ती से दबा दी जाती है.

अभी हाल ही में २७ फ़रवरी को वरिष्ठ गाँधीवादी और जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख का निधन हुआ लेकिन बहुत कम चॅनेल्स ने इस खबर पर रिपोर्ट दिखाई , ज़्यादातर चॅनेल्स ने टिकर पर खबर दिखा कर अपना पल्ला झाड़ लिया !

उससे बड़ी हैरत की बात यह है कि हरिद्वार में कुंभ मेला चल रहा है और विरले ही इस पर कोई रिपोर्ट टीवी चॅनेल पर दिखाई देती है , ज़्यादातर टीवी वाले 'धर्म' के नाम पर ज्योतिष और राशिफल आधारित प्रोग्राम दिखाते हैं या 'श्रीलंका में मौजूद सोने की लंका के प्रमाण'। कुंभ मेले को जिस तरह मीडिया में ब्लॅक आउट किया है वह शर्मनाक है.

यह गंभीर बात है कि खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया किस हद तक बाइयस्ड है. बाकी नेता अभिनेताओं का स्टिंग ऑपरेशन होता है और वो दुनिया के सामने एक्सपोज़ होते हैं बड़ा सवाल यह है कि मीडिया का स्टिंग ऑपरेशन कर उसकी कारगुज़ारी को कौन एक्सपोज़ करेगा?
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